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ज्ञानवापी के बाहर खड़ा मैं नंदी हूँ

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हूँ अंगद सा डटा, ना मैं बंदी हूँ  ज्ञानवापी के बाहर खड़ा मैं नंदी हूँ  सतयुग में महादेव ने था विषपान किया जग के रक्षा हेतु वह अमर बलिदान दिया  कलयुग में भी आयी बलिदान की बारी  आक्रांताओ ने काशी पर जब की सवारी  टूटा मंदिर, शिवलिंग भी टूटा  पर तोड़ न पाए थाती हमारी यवन आक्रमणों का मैं प्रतिद्वंदी हूँ  ज्ञानवापी के बाहर खड़ा मैं नंदी हूँ।। वर्षों से प्रतीक्षा है बाबा के मुक्ति की  तप में हु लीन शिव और शक्ति की  जब डमरू की ध्वनि से प्रलय मचेगा शिव के क्रोधाग्नि का तांडव नचेगा  कंकर कंकर घूम उठेगा शंकर के द्वार से गुलामी के निशान मिटेंगे प्रलयज्वार से  मुक्ति की आस का मैं अभिष्यंदी हूँ  ज्ञानवापी के बाहर खड़ा मैं नंदी हूँ।। माँ गंगा की पावन धारा से अभिषेक होगा  काशी का गलियारा सज उठेगा लहराएगा धरम का विजय निशान  जब बाबा लौटेंगे अपने स्थान  होगा उत्सव काशी के पुनर्निर्माण का गीत गाया जाएगा विश्वनाथ के गान का  उसी दिन का तो मैं आसंदी हूँ  ज्ञानवापी के बाहर खड़ा मैं नंदी हूँ।। - हर्षल कंसारा