तुम्हारे कदम...
धीरज रखकर चलते है जो
पावस बनकर ढलते है जो
एक दिशा को सम्मुख रख
चिर-निरंतर बढ़ते है जो
धुप-छाव में हसते है जो
है अडिग, पर आस्ते है जो
आसमान छूने की चाहत के संग
सदा जमीनपर बसते है जो
चलते हुए न थकते है जो
पीछे मुड़कर न देखते है जो
अपनी धुन मै मस्त हो कर
दुनिया मुठ्ठी मै रखते है जो
- हर्षल कंसारा
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