वो चाँद सी खूबसूरत, मैं सूरज हूँ धीर गंभीर वो शाम सी है शीतल, मैं हूँ दिन की आरंभिक वो टिमटिमाता तारा है, जो लगता बहुत प्यारा है मैं तो उगते सूरज जैसा, लाता रोशनी जहा अंधेरा है उसकी दूधिया सफेदी की, कईयों ने खाई कसमे है चाँद जैसा सुंदर होना, कहा किसी के बस में है! मेरी कोई कसमे नही खाता, मेरी करते आराधना सब सूरज सम्मुख न अंधेरा छाता, किरणों की रोशनी छाती जब किन्तु उसका सुंदर होना, और मेरा तेजस्वी होना इसका न बचता कोई अर्थ.... जब सोचता हु की, सूरज और चाँद साथ में चल नही पाते है शायद, इसी वजह से वो और मैं कभी मिल नही पाते है - हर्षल कंसारा
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